बचपन में हर बच्चे की जुबां पर आप ये शब्द सुनेंगे कि "मैं बड़ा होकर ये बनूँगा"

पर वक़्त के साथ-साथ ये शब्द भी कहीं पीछे छूट जाते हैं व नादान सपने कहीं धुँधले पड़ जाते हैं

तो अगर आप भी कुछ इसी दौर से गुजर रहे हैं

तो इसके पीछे बच्चों के पेचीदा सिलेबस को दोषी ठहराना ठीक है 

क्योँकि इन्हीं भारी बस्तों के बोझ तले दब जाते हैं उनके सपने

और उन्हें किताबों के बाहर की दुनिया को एक्स्प्लोर करने का मौका ही नहीं मिल पाता

इसलिए इससे बचने के लिए पहले तो आप खुद को थोड़ा समय दें

कुछ समय के लिए डिस्ट्रैक्शन से अलग होकर खुद की दिनचर्या पर ध्यान दें 

ध्यान दें कि दिनभर आप क्या करते हैं, आपको क्या अच्छा-बुरा लगता है, व कौन-सी चीज आपको बहुत प्रोत्साहित करती जिसके लिए आप हार नहीं मानते

अब रिसर्च करें कि आपकी पसंद से मिलते करियर के क्या विकल्प हैं व कैसे उन्हें किया जा सकता है

जरुरत पड़ने पर आप किसी प्रोफ़ेशनल से करियर काउंसलिंग भी ले सकते हैं

पर याद रखें कि एक इंसान के करियर कई हो सकते हैं इसलिए खुद को एक छोटे दायरे में ना रखें